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बढ़े चलो, बढ़े चलो

प्रतियोगिता हेतु प्रस्तुत
दिनांक, 27 अगस्त 2023
कवि, नूतन लाल साहू
विषय,बढ़े चलो, बढ़े चलो

इस रफ्तार भरी दुनिया में हम
किसी एक ही चीज में खो जाते है
मंजिल तक पहुंचना है तो
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
इस जहां के मेंले में
हौसलों की उड़ान भरना है
उचाइयां आसमां की चूमना है तो
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
किस्मत के सहारे बैठने वाला
कुछ कहां भला कर पाता है
स्वयं को हीरा अगर बनाना है तो
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
जीवन के संघर्ष से क्या घबराना
जीवन तो है प्रभु जी का एक नजराना
यदि इतिहास रचना है अपना तो
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
माटी का पुतला है शरीर
एक दिन मर कर जल जाना है
अगर करना है कुछ हटकर तो
बढ़े चलो, बढ़े चलो।
बतलाओं तो संघर्ष कहां नही है
बदल दो समय के तेज को
दुनियां जीतने की ख्वाहिश है तो
बढ़े चलो, बढ़े चलो।

नूतन लाल साहू

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2 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Reena yadav

27-Aug-2023 02:22 PM

👍👍

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